विश्व का सौंदर्य
(परमपूज्य दादाजी, स्व० श्री विन्दु माधव शर्मा जी की रचना " कण्वाश्रम से उद्धृत )
आशीष जिसके विश्व में है रूप-पारा वार ।
आशीष जिससे विश्व है सौन्दर्य का भंडार ॥
आशीष जिसने शुन्य में, नभ में जलाये - दीप ।
आशीष - यमुना तट सरस जिसने उगाये नीप ॥
(१)
कैसी कला है , कौन है वह मौन-छायाकार ।
नभ चंद्र अरु , वन में मृगी सर- मध्य पंकज - हार ॥
कैसी विमल है तूलिका आकाश भी रंगीन ।
है नित्य नूतन रूप , जग लगता नही प्राचीन ॥
(२)
किसने किया है विश्व भर में रूप का निर्माण ।
किससे हुआ है आज तक सौंदर्य का कल्याण ॥
ये फूल पाकर गंध का उपहार , रूप - अपार ।
है झूमते मद - मस्त जिससे है चकित - संसार ॥
(३)
इन तितलियों के पंख में जो है असंख्य - लकीर ।
रंगीन और महीन कैसे ? प्रश्न है गंभीर ॥
ऊपर विहंसते फूल औ सारी कटीली डाल ।
इन कीचड़ओ में भी कमल आश्चर्य और कमाल ॥
(४)
वह रूप जिसको देखकर ही "टकटकी " लग जाय ।
या चाहकर भी ये पलक नीचे नहीं आ पाय ॥
मैं उस कलाविद के चरण को चाहता लूँ चूम ।
उनके गुणों के गीत गाकर , नाच कर लूँ - झूम ॥
(५)
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