Tuesday, June 16, 2009

विश्व का सौंदर्य

विश्व का सौंदर्य

(परमपूज्य दादाजी, स्व० श्री विन्दु माधव शर्मा जी की रचना " कण्वाश्रम से उद्धृत )

आशीष जिसके विश्व में है रूप-पारा वार ।
आशीष जिससे विश्व है सौन्दर्य का भंडार ॥
आशीष जिसने शुन्य में, नभ में जलाये - दीप ।
आशीष - यमुना तट सरस जिसने उगाये नीप ॥

(१)

कैसी कला है , कौन है वह मौन-छायाकार
नभ चंद्र अरु , वन में मृगी सर- मध्य पंकज - हार
कैसी विमल है तूलिका आकाश भी रंगीन
है नित्य नूतन रूप , जग लगता नही प्राचीन ॥

(२)

किसने किया है विश्व भर में रूप का निर्माण
किससे हुआ है आज तक सौंदर्य का कल्याण
ये फूल पाकर गंध का उपहार , रूप - अपार
है झूमते मद - मस्त जिससे है चकित - संसार ॥

(३)

इन तितलियों के पंख में जो है असंख्य - लकीर
रंगीन और महीन कैसे ? प्रश्न है गंभीर
ऊपर विहंसते फूल औ सारी कटीली डाल
इन कीचड़ओ में भी कमल आश्चर्य और कमाल ॥

(४)

वह रूप जिसको देखकर ही "टकटकी " लग जाय
या चाहकर भी ये पलक नीचे नहीं आ पाय
मैं उस कलाविद के चरण को चाहता लूँ चूम
उनके गुणों के गीत गाकर , नाच कर लूँ - झूम ॥

(५)

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