Wednesday, June 17, 2009
मेरा भारत महान
जितनी देर से ऑफिस पहुचें, उतनी ज्यादा उनकी शान ।
करके एसी कूलर ऑन, लग जाता मैगजीन में ध्यान ॥
काम नहीं होता लोगो का , चाहे चल जायें उनके प्राण ।
लगा के चक्कर हो परेशान , फ़िर भी मेरा देश महान ॥
१
क्रिकेट का गेम जब आता , हो जाता है टीवी ऑन ।
बीमार हूँ , आ नहीं सकता , ऑफिस में हो जाता फोन ॥
सबको चिंता यही सताती, छाएगा कौन ? सचिन या वॉर्न ।
सड़के हो जाती वीरान, मेरा देश महान ॥
२
वोटो की अंधी राजनीती में, पिस रहा हिंदू - मुसलमान ।
भूल गए है लोग यहाँ के, करना नारी का सम्मान ॥
कानून भी तलवे चाट रहा है, उनके जो हैं धनवान ।
लुट चुकी है देश की शान , फ़िर भी मेरा देश महान ॥
३
फिल्मो का तो शौक निराला, हरदम रहता केबल ऑन ।
दीवारों से हटे राम-कृष्ण , जगह घेरे शाहरुख़ - सलमान ॥
भजन स्तुति क्या होता है ? सुबह का स्वागत फिल्मी गान ।
सिर झुक जाता है शर्म से , मेरा भारत देश महान॥
४
आतंकवाद का खेल - घिनौना, खेल रहा है पाकिस्तान ।
सब कुछ जानते हुए भी, वह बन जाता है अनजान ॥
फ़िर भी उसकी हर गलती को, माफ़ कर देता हिंदुस्तान ।
नेताओं को कोटि प्रणाम , क्योंकि , मेरा भारत महान ॥
५
आम लोगों की बात क्या करें, राजनेताओं के बदलते बयान ।
कारगिल के बाद भी देखो, मुशर्रफ को मिलता सम्मान ॥
उग्रवाद के शहंशाह, चलते हैं अपना सीना तान ।
फ़िर भी कहते नहीं अघाते, मेरा भारत महान ॥
६
गर्त में जा रहा देश ये , बेबस देख रहा इंसान ।
कल्कि अवतार से पहले ही, कोई अवतार ले लो भगवान् ॥
तुम्ही करो चमत्कार कोई, लौटा दो खोया सम्मान ।
ताकि हम कह सके गर्व से, मेरा भारत महान ॥
मेरा भारत महान ...
७
रचना की तिथि : नवम्बर २००२
Tuesday, June 16, 2009
विश्व का सौंदर्य
विश्व का सौंदर्य
(परमपूज्य दादाजी, स्व० श्री विन्दु माधव शर्मा जी की रचना " कण्वाश्रम से उद्धृत )
आशीष जिसके विश्व में है रूप-पारा वार ।
आशीष जिससे विश्व है सौन्दर्य का भंडार ॥
आशीष जिसने शुन्य में, नभ में जलाये - दीप ।
आशीष - यमुना तट सरस जिसने उगाये नीप ॥
(१)
कैसी कला है , कौन है वह मौन-छायाकार ।
नभ चंद्र अरु , वन में मृगी सर- मध्य पंकज - हार ॥
कैसी विमल है तूलिका आकाश भी रंगीन ।
है नित्य नूतन रूप , जग लगता नही प्राचीन ॥
(२)
किसने किया है विश्व भर में रूप का निर्माण ।
किससे हुआ है आज तक सौंदर्य का कल्याण ॥
ये फूल पाकर गंध का उपहार , रूप - अपार ।
है झूमते मद - मस्त जिससे है चकित - संसार ॥
(३)
इन तितलियों के पंख में जो है असंख्य - लकीर ।
रंगीन और महीन कैसे ? प्रश्न है गंभीर ॥
ऊपर विहंसते फूल औ सारी कटीली डाल ।
इन कीचड़ओ में भी कमल आश्चर्य और कमाल ॥
(४)
वह रूप जिसको देखकर ही "टकटकी " लग जाय ।
या चाहकर भी ये पलक नीचे नहीं आ पाय ॥
मैं उस कलाविद के चरण को चाहता लूँ चूम ।
उनके गुणों के गीत गाकर , नाच कर लूँ - झूम ॥
(५)
Monday, June 15, 2009
शब्दों का माया जाल
द्विज
द्विज था द्विज , द्विज निहारता ।
द्विज के घर द्विज , द्विज द्विज-विहीन था ॥
भूखा द्विज , द्विज पुकारता ।
द्विज-विहीन द्विज , द्विज में लीन था ॥
Saturday, June 13, 2009
हर कोई है बीजी, मैं लेजी क्यों ?
हर कोई है बीजी, मैं लेजी क्यों ?
लोग फ्रेश - फ्रेश रहते हैं, मैं dizzy क्यों?
कौंध रहा अंतर्मन में ।
विचार-शून्य गगन में।
चिंतन और मनन में।
अपने मन के आंगन में।
वन में उपवन में।
काली घटा सावन में।
चूड़ी में , कंगन में।
जीवन और मरण में ।
रज-रंजित चरण में।
धरती के कण - कण में।
प्रभु के शरण में ।
हर कोई है fizzy , मैं frenzy क्यों?
इन्द्रधनुष सबका जीवन, मेरा greasy क्यों ?
तुने क्या कमाल किया !
ऐसा है तुने सवाल किया ।
विक्रम और बैताल किया ।
जीवन को तूने ऐसे जिया ।
जैसे हो कोई बूझता दिया ।
धीमा जीवन-रथ चाल किया ।
ख़ुद को इसमे ढाल लिया।
संकट ख़ुद विकराल किया।
मुश्किल बढ़ी , सवाल किया ?
बिन मतलब, बवाल किया !
बेचारे सा हाल किया ।
सबका लाइफ क्रिस्टल-क्लेअर , मेरा hezy क्यों?
जीवन सबका बसंती - बयार , मैं fuggy क्यों?
माना गलती थी मेरी।
सम्हलने में की देरी।
बादल घोर-घनेरी ।
निशा घुप्प-अँधेरी ।
सहचर-सखा सब वैरी।
लोचन अश्रु-जल तैरी ।
संकीर्ण सोच थी मेरी ।
जब-जब विपदा ने घेरी ।
सुनते ही रणभेरी ।
मन बना क्यों लक्कड़- ढेरी ।
क्या इतनी हो गई देरी ?
दुनिया कितनी कांफिडेंट दिखती , मैं edgy क्यों?
सबका जीवन समतल भूमि, मेरा ridgy क्यों?
मैंने है मन में ठाना।
मुझको है नाम कमाना ।
जाने सारा जमाना ।
चाहू ऐसा काम कर जाना ।
हर कोई हो मेरा दीवाना।
बच्चा, बुढ्ढा, सयाना ।
मन, ऐसी तरकीब बताना ।
मिल जाए खुशियों का खजाना ।अब , मन में जो है ठाना।
उसे हर कीमत पे है पाना।
ठीक- ठीक समझाना।
लोग लाइफ को सीरियस लेते , मैं easy क्यों?
दुनिया indiscriminative, मैं choosy क्यों?
कठिन परिश्रम से जो ना डरता।
लापरवाही, जो न बरतता।
ख़ुद को है जो प्रेरित करता।
हाय री किस्मत, जो ना करता ।
सही समय की प्रतीक्षा करता ।
समय सभी घावों को भरता ।
स्वस्थ अपने तन- मन को रखता ।
निरोग मनुष्य सब सम्भव करता ।
सकारात्मक विचार हो रखता ।
सफलता उसके चरण पखारता ।
प्रगति की वो सीढिया चढ़ता ।
तुम भी सफलता पा लोगे , हो crazy क्यों?
Take it easy! life is rosy!! तुम uneasy क्यों?
---सतीश राज पाठक
(रचना की प्रशंषा के लिए आप साबका आभार , आपके प्रशंषा के दो शब्द मेरे लिए प्रेरणा के श्रो़त हैं - धन्यवाद् )